लाइव पलामू न्यूज: भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाए जाने वाला श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का खास महत्व है। हिंदू परिवार के अधिकांश घरों में इसे खास तरीके से मनाया जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार भादो की अष्टमी तिथि को ही भगवान विष्णु ने द्वापर युग में भगवान कृष्ण के रूप में अपना आठवां अवतार लिया था। ज्योतिषिय गणना के अनुसार यह भगवान श्रीकृष्ण का 5251वां जन्मदिवस है।
कथा:-
एक समय की बात है मथुरा का राजा कंस के आतंक से सारे लोग त्राहिमाम कर रहे थें। वह सत्तालोभी था। उसने अपने पिता को सत्ता से हटाकर स्वयं को राजगद्दी पर सुशोभित कर लिया था। कंस की एक बहन थी ‘देवकी’, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था। कंस अपनी बहन देवकी को विदा करने जा रहा था कि तभी आकाशवाणी हुई- ‘हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा अंत करेगा।’
यह सुनकर कंस वासुदेव को मारने को उठा। जिस पर देवकी ने कहा कि वह वासुदेव को न मारे, बल्कि उसकी संतान के प्राण हर ले। जिसके बाद कंस ने वासुदेव व देवकी को कारागार में डाल दिया। एक-एक कर कंस ने देवकी के सात पुत्रों को मार डाला। अब बारी थी देवकी के आंठवे पुत्र की। भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात में रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया। उसी समय नंद की पत्नी यशोदा भी एक पुत्री की मां बनी।
कृष्ण के अवतार के बाद आकाशवाणी हुई कि ‘तुम बच्चे को इसी समय अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो।’ इस आकाशवाणी के पश्चात जागते हुए पहरेदार सो गए। कारागृह के फाटक अपने आप खुल गये और उफनती अथाह यमुना ने वसुदेव को राह दिखाया। वासुदेव शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर नंदजी के घर पहुंचे। वहां उन्होंने नवजात को यशोदा के साथ सुलाया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए। तत्पश्चात कारागृह के फाटक पूर्ववत बंद हो गए।
इधर कंस को सूचना मिली कि वसुदेव-देवकी की आठवीं संतान जन्म ले चुका है। उसने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक दिया, लेकिन कन्या आकाश में उड़ गई और कहा- ‘अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारनेवाला तो जन्म ले चुका है और जल्द ही तेरे पापों से इस धरती को मुक्त करवाएगा।